Farida

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संस्कारहीन शिक्षा

संस्कारहीन शिक्षा 

 
 एक संस्कारित परिवार की अबोध कन्या थी। घर में धार्मिक संस्कार मिलने से उससे पिताजी कभी पूछते-“तुम्हें कैसा बनना है ?” वह सहजता से कह देती- “सीता माता जैसी।”
कुछ बड़ी होने पर शहर के कॉलेज में पढ़ने गयी। आधुनिक परिवेश, शील की हँसी उड़ाने वाले स्वच्छन्द साथियों का वातावरण। मन विकृत करने वाले अखबार, पत्रिकायें, टी.वी. के अश्लील सीरियल आदि। पापों को छिपाने वाले समस्त कुसाधनों की जानकारी भी सहज ही हो गयी।
जिस-तिस प्रकार शिक्षा पूर्ण कर किसी विदेशी कम्पनी में नौकरी करने लगी और वहीं किसी सहकर्मी के प्रेम में फँस कर जीवन बर्बाद हो गया। कुछ दिनों बाद एड्स की बीमारी हो गयी। नौकरी छूट गयी।
घर लौट आयी। लज्जा के कारण बाहर मुख भी नहीं दिखा पाती और तड़प-तड़प कर मर गयी।
सत्य है, सुसंस्कारों के बिना शिक्षा भी क्लेश का ही कारण है।

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